ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान को लेना पड़ा नर नारायण अवतार

न्यूज डेस्क, ऊंचाहार, रायबरेली: पूरे किसुनी मजरे अरखा गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिन गुरुवार को कथावाचक बद्री प्रपन्नाचार्य महराज ने भक्त और नारायण की कथा का मार्मिक वर्णन करते हुए कहा कि अज्ञानता में विद्या का आभास व शुद्ध चेतन शक्ति से मिलकर जीव की रचना हुई है। अविद्या से विद्या का आभास और शुद्ध चेतन से शक्ति मिलने पर ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है।

उन्होंने कहा कि राजा उत्तानपाद का विवाह सुनीति के साथ हुआ था। जिन्हें की वर्षों तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। पत्नी द्वारा संतान प्राप्ति के लिए पति से दूसरी शादी करने की बात कही थी। इस बात के लिए राजा उत्तानपाद तैयार नहीं थे। पत्नी के समझाने के बाद दूसरी शादी को तैयार हुए थे। इसके बाद दूसरी शादी सुरुचि के साथ हुई। दोनों पत्नियों में विवाद होने के चलते बड़ी पत्नी सुनीति नाराज होकर जंगल चली गई थी। दूसरी पत्नी सुरुचि व राजा उत्तानपाद महलों में निवास करते थे। एक दिन राजा घर से बाहर गए हुए थे, जिनके देर रात तक न लौटने पर नाराज पत्नी सुरुचि ने घर का दरवाजा बंद करवा दिया। राजा के महल पहुंचने पर फाटक बंद देख वह नाराज होकर राजा पहली पत्नी सुनीति के पास चले गए। भगवत कृपा होने की वजह से पति-पत्नी के संसर्ग से पत्नी सुनीति गर्भवती हो गई थी। जिससे ध्रुव नाम के बालक जन्म हुआ था।

ध्रुव बचपन से ही भगवान की तपस्या में तल्लीन रहते थे। कई वर्षों की तपस्या के बाद भगवान को नर नारायण के रूप में अवतार लेना पड़ा। तात्पर्य यह है कि ईश्वर की इच्छा के बगैर कुछ भी मिल पाना संभव नहीं है। जिस पत्नी ने संतान की प्राप्ति के लिए राजा को दूसरी शादी के लिए तैयार किया। त्याग की भावना के बाद भगवान की कृपा से उससे ही संतान की प्राप्ति हुई। ध्रुव जैसे भक्त की
पुकार पर भगवान को नर नारायण के रूप में अवतार लेना पड़ा। इस मौके कथा आयोजक लालता प्रसाद मिश्र, पत्नी शशि प्रभा मिश्रा, गया प्रसाद मिश्र, राकेश मिश्र, नीरज मिश्र, धीरज मिश्र, अभिषेक, गौरव, अनुभव, करण बहादुर सिंह, विजय कुमार, रामपाल समेत बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण मौजूद रहे।

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