ग्रामीण संस्कृति की प्राचीनता व आधुनिकता की अनुभूति कराता है डलमऊ का कार्तिक पूर्णिमा मेला

 

न्यूज़ डेस्क।
 रायबरेली के डलमऊ में बैल गाडियों की चुर चुराहट , बैलों के गले में पड़े घुंघरू व चौरास की ध्वनि के साथ कदम ताल करने से निकलने वाली मधुर ध्वनि कान को सुखद व गांव की सुंदर संस्कृति का अहसास कराती है। जिसे सुनकर लोग उन्हें देखने के लिए सड़कों व पगडंडियों तक खिंचे चले आते हैं।
बात हो रही है डलमऊ में लगने वाले कार्तिक पूर्णिमा मेले की, मेंले में एक दो नहीं हजारों की संख्या में बैल गाडियों से श्रद्धालु आते हैं, घर का पता न गांव का फिर भी सब एक परिवार की तरह होते हैं। एक अलग सी दुनिया गंगा की कटरी में बस जाती है। जिसमें न जानने वाले लोग भी आपस में एक होते हैं, और मेंले का आनंद लेते हैं।
मेले में आने की तैयारियां किसानों ने शुरू कर दी हैं, गांव में कहीं रहकलों की मरम्मत तो कहीं उनकी सजावट में लोग जुटे हुए हैं।
 बैलगाड़ियों से मेलार्थी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान के लिए आते हैं, बैलों के गले में पड़े घुंघरू व चौरास की मधुर ध्वनि कार्तिक पूर्णिमा मेले का अहसास के साथ साथ ग्रामीण जीवन के आनन्द का कराती हैं।
बैलों की पीठ पर रंगीन झूल व सींघों पर बंधी रंग-बिरंगी पट्टियां हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। डलमऊ के कार्तिक पूर्णिमा मेले का आकर्षण बैल गाडियों से आने वाले श्रद्धालु होते हैं, दो दिनों तक डलमऊ गंगा तट पर परिवार के साथ रहकर मेंले का आनंद लेते हैं।

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