रायबरेली: गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकार स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से रोजगार के के नए अवसर दे रही हैं। विभागीय अधिकारियों की अनदेखी के कारण रोजगार देने की मुहिम रफ्तार नहीं पकड़ पा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि गांव के लोगों ने महिलाओं के नाम से समूह बनाया और समूह को चलाने के लिए आजीविका मिशन से पैसा लिया। पैसा भी खर्च कर दिया और समूह भी ठंड हो गया।
जिलेमें रीब11203 महिला स्वयं सहायता समूह हैं।
इन समूहों में से महज 75 समूह उत्पाद बनाने का काम कर रहे हैं। विभा के आंकड़ों पर गौर किया जाए तो सामुदायिक विकास निधि (सीसीएफ) के रू में 1.50 लाख पैसे लेने वाले समूहों की संख्या 3590 है। यही नहीं सीसीएल (कैश क्रेडिट लिमिट) के तहत बैंकों से करीब 8000 समूहों ने लोन लिया है। इसके बावजूद अपना व्यवसाय नहीं शुरू किया। डलमऊ के राजाराम, लालगंज के अभिषेक शुक्ल, ऊंचाहार के सुनील तिवारी का कहना है कि कई समूह कागज पर उत्पाद बना रहे हैं, जबकि हकीकत यह है कि कई मौके पर लंबे समय से बंद हैं।
सभी समूह यदि अपना काम शुरू कर दें तो जिले में गरीबी का स्तर कम हो जाएगा। आजीविका मिशन के अधिकारी नए समूहों का गठन करने में रुचि ले रहे हैं, जबकि पुराने समूह निष्क्रिय हैं। ऐसे में महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने का सपना कैसे साकार होगा इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
आजीविका मिशन के उपायुक्त स्वरोजगार ऋषिपाल सिंह का कहना है कि समूह बनाकर उनको एक्टिव रखने के लिए ब्लाक में कर्मचारी लगे हुए हैं। समूहों का सत्यापन कराया जाएगा। जो समूह निष्क्रिय हैं उनको सक्रिय करने के लिए प्रयास किए जाएगें। आजीविका मिशन का उद्देश्य गांवों से गरीबों को दूर करना है।