नीरज शुक्ल
डलमऊ(रायबरेली)। कार्तिक पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर मंगलवार को दालभ्य पीठ बड़ा मठ में संतों ने विभिन्न प्रसंगों पर प्रवचन दिया, जिसे सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।
कथा व्यास राजेंद्र जी ने धनुष यज्ञ के पर प्रकाश डाला। कानपुर से आए स्वामी परमात्मानंद व्याकुल जी महाराज ने श्रीकृष्ण की बाललीला का संगीतमय वर्णन किया। स्वामी गीतानंद ने मां गंगा की उत्पत्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि राजा बलि से तीन पग भूमि दान में लेने के लिए भगवान विष्णु ने अपना दूसरा पैर आकाश की ओर उठाया था, तब ब्रह्मा जी ने उनके पैर धोए थे और उस जल को कमंडल में भर लिया था। जल के तेज से ब्रह्मा जी के कमंडल में मां गंगा का जन्म हुआ। कुछ समय बाद ब्रह्मा जी ने उन्हें पर्वतराज हिमालय को पुत्री के रूप में सौंप दिया था।
उन्होंने बताया कि एक कथा यह भी प्रचलित है कि जब भगवान वामन ने अपना एक पैर आकाश की ओर उठाया था तब उनकी चोट से आकाश में छेद हो गया था। इसी से तीन धाराएं फूटी। एक धारा पृथ्वी पर गिरी, दूसरी स्वर्ग में और तीसरी पाताल लोक चली गई।
इसलिए मां गंगा को त्रिपथगा के नाम से भी जाना जाता है। कार्यक्रम के समापन पर सनातन धर्मपीठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि ने कहा कि रामकथा को जीवन में उतरा जाए तो जीवन में आनंद ही आनंद होगा। इस अवसर पर स्वामी दिव्यान्द गिरि, स्वामी रामचैतन्य गिरि, कथा वाचक माधुरी, स्वामी धर्मानंद मौजूद रहे।
आश्रम की ओर से मठ परिसर में सुबह से भंड़ारा शुरू हो गया था। दूर दूर से आए श्रद्धालु भंडारे में प्रसाद लिया। आश्रम के स्वामी दिव्यानंद गिरि ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा पर दिनभर भंडारा चलेगा।
