रायबरेली: शहीद-ए-आजम भगत सिंह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक ऐसे नाम हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही राजनीतिक-वैचारिक प्रखरता के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उनके विचारों की गूंज आज भी युवाओं के सपनों में सुनाई देती है। उनका जीवन महज 23 साल के एक ऐसे नौजवान की कहानी नहीं है, जो फांसी के फंदे को गले लगाकर भी अपनी विचारधारा पर अडिग रहे।
यह विचार मातृभूमि सेवा मिशन इकाई रायबरेली के संयोजक प्रदीप पांडेय ने शहीद भगत सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में राना बेनी माधव पार्क शहीद स्मारक में आयोजित सामाजिक न्याय संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किये। कार्यक्रम का शुभारम्भ मातृभूमि सेवा मिशन इकाई रायबरेली के सभी अध्यात्मिक साधकों ने शहीद भगत सिंह के चित्र पर माल्यार्पण, पुष्पार्चन एवं दीप प्रज्जवलन से किया।
कार्यक्रम का संचालन कर रहे योगाचार्य बृजमोहन ने कहा भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह युवकों के लिए हमेशा ही एक बहुत बड़ा आदर्श बना रहेगा।
भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907, को लायलपुर जिले के बंगा गांव में पंजाब प्रांत वर्तमान पकिस्तान में एक सिख परिवार में हुआ था।भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी एवं क्रान्तिकारी थे। चन्द्रशेखर आजाद व पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर इन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए अभूतपूर्व साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुक़ाबला किया। पहले लाहौर में बर्नी सैंडर्स की हत्या और उसके बाद दिल्ली की केन्द्रीय संसद (सेण्ट्रल असेम्बली) में बम-विस्फोट करके ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलन्दी प्रदान की। इन्होंने असेम्बली में बम फेंककर भी भागने से मना कर दिया। जिसके फलस्वरूप अंग्रेज सरकार ने इन्हें २३ मार्च १९३१ को इनके दो अन्य साथियों, राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फाँसी पर लटका दिया और वीरगति को प्राप्त हुए।
उपस्थित साधक: महिला योग प्रशिक्षिका आरती, पीयूष बाजपई,इ.निलेश सिंह देवतादीन यादव, मोनिका अग्रहरि, आशू मौर्या, संकटा प्रसाद अग्रहरि, माया देवी, अंकुश गुप्ता, आयुष गुप्ता, प्रिया गुप्ता, आकर्ष, वी एस शंकर।