रायबरेली : गंगा के किनारे बसे डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में मछुवारा समाज के तकरीबन भूमिहीन 300 परिवार हैं। इन परिवारों के पुरुष मेहनत मजदूरी करते हैं और महिलाएं घर में मूंज से रस्सी (बाध) बनाने का काम करती है। इस तरह मूंज की रस्सी बनाकर महिलाएं तरक्की की डोर को थामे हुए हैं।

निकिता निषाद का कहना है कि बारिश के बाद रस्सी बनाने का काम शुरू होता है। जो पांच माह चलता है। इस दौरान महिलाएं प्रतिदिन करीब डेढ़ किलो रस्सी बनाती हैं। बाजार में एक किलो मूंज की रस्सी की कीमत 80 रुपये है। डलमऊ में बनी रस्सी की लालगंज बाजार से कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी, प्रयागराज, फतेहपुर के व्यापारी खरीद कर ले जाते हैं। इस रस्सी से चारपाई बिनी जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में मूंज की चारपाई की बहुत मांग है। साथ ही कुर्सी और मेज भी इससे बनाई जाने लगी हैं।

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ऐसे बनती है मूंज से रस्सी
सबसे पहले सरपत से मूंज निकाल कर उसकी जमकर कुटाई की जाती है, उसके बाद हाथ से रस्सी बनाई जाती है। एक दिन में यदि परिवार के सभी सदस्य काम करें तो तीन करीब किलो बाध (रस्सी) तैयार होती है। जिसकी बाजार में कीमत 240 रुपये है।

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सरकारी मदद मिले से परवान चढ़े कारोबार

रस्सी बनाने का काम करने वाली बबली निषाद, माधुरी देवी, कमल निषाद, प्रेमा देवी, मुन्नी देवी व शिवानी निषाद का कहना है कि सरकारी योजनाएं कागज पर पल्लवित हो रही हैं। प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के तहत आवेदन किया, लेकिन लाभ नहीं मिला। समूह गठन कर बाध बनाने के रोजगार को बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हूं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

वर्जन

नगर पालिका क्षेत्र में गरीब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए योजना संचालित है। नगर पंचायतों में गरीबी से जूझ रही महिलाओंं के लिए अभी कोई योजना नहीं है।
नेहा श्रीवास्तव, स्वनिधि शहर मिशन प्रबंधक डूडा