चिन्मया विद्यालय के 30वें स्थापना वर्ष उत्सव का भव्य आयोजन

ऊंचाहार : एनटीपीसी आवासीय परिसर स्थित चिन्मया विद्यालय ने शुक्रवार को अपने 30वें स्थापना दिवस उत्सव के प्रातः कालीन कार्यक्रम में स्वामी स्वरूपानंद ने कक्षा 11 एवं 12 के बच्चो को जीवन जीने की कला सिखाई। स्वामीजी ने कहा कि जीवन का सबसे महत्वपूर्ण समय यही है जहां हम जाना चाहते हैं वो तय हो जाता है। आप सभी बदलते हुए भारत की तशवीर है और विकसित भारत का स्वप्न आप लोगो के हाथो तय होना है। स्वामी जी बताया कि धन कमाना जीवन का लक्ष्य नही है , धन तो कही भी कमाया जा सकता है । छात्रों को अपने जीवन में लक्ष्य बड़ा रखना चाहिए इससे आपका प्रयास बड़ा हो जायेगा । अगर हम अपना लक्ष्य ही छोटा रखेंगे तो प्रयास भी छोटा होगा और उसका प्रतिफल भी छोटा होगा । विकसित भारत का लक्ष्य जो 2047 तक तय किया गया वो आपके लगन और मेहनत का प्रतिफल होगा। जब भारत विकसित होगा तो निःसंदेह पूरे विश्व में सतत विकास की अवधारणा पूरी होगी। आज आप एक वैश्वविक नागरिक है।

इसके बाद पूर्ववर्ती छात्र समागम का आयोजन किया। इस विशेष कार्यक्रम में विद्यालय के पूर्व छात्र, जो अब विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्यरत हैं—जैसे डाक्टर, इंजीनियर, आईपीएस, पीसीएस, और वैज्ञानिक—ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।

संध्याकालीन कार्यक्रम और विभीषण गीता प्रवचन
संध्या सत्र में स्वामी स्वरूपानंद जी द्वारा विभीषण गीता प्रवचन के तीसरे दिन की कथा प्रस्तुत की गई। उन्होंने रामायण के “धर्म के रथ” के प्रतीकात्मक महत्व को विस्तार से समझाया। स्वामी जी ने बताया कि धर्म के रथ के चार घोड़े—बल, विवेक, इंद्रिय संयम, और परहित—हैं। जब इन चारों गुणों से सुसज्जित व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चलता है, तो उसका रथ वेग से आगे बढ़ता है।

उन्होंने आगे कहा कि इस धर्म रथ की लगाम क्षमा, कृपा, और शक्ति की रशियों से बनी होती है। इन गुणों के बिना धर्म का मार्गदर्शन संभव नहीं। कथा ने श्रोताओं को गहराई से प्रेरित किया।

सम्मान समारोह
कार्यक्रम के अंत में विद्यालय के प्राचार्य, श्री मनीष कुमार स्वामी ने सभा को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि एनटीपीसी कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष जितेंद्र श्रीवास्तव और महासचिव रवींद्र कुशवाहा ने स्वामी स्वरूपानंद जी का सम्मान किया। इस अवसर पर एनटीपीसी कर्मचारी यूनियन के अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित रहे।

इस कार्यक्रम ने विद्यालय के गौरवशाली इतिहास को रेखांकित करते हुए, समाज में विद्यालय के पूर्व छात्रों के योगदान और सांस्कृतिक मूल्यों के महत्व को उजागर किया।

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