रायबरेली : गंगा का पानी अमृत है, इसका कारण है कि उद्गम से लेकर गंगासागर तक पानी औषधीय पेड़ पौधों व वनस्पतियों को स्पर्श कर बहता है, लेकिन गंगा किनारे की वनस्पतियां धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही हैं। डलमऊ में भी गंगा किनारे औषधीय पौधे खत्म हो रहे हैं। पर्यावरण प्रेमी गंगा के किनारे से गायब हो रहीं वनस्पतियों को लेकर चिंता जता रहे हैं। गंगा किनारे से पौधों के विलुप्त होने से वन्य जीवों की रिहाइश पर असर पड़ रहा है तो साथ ही गंगा तट के किनारे की प्राकृतिक छटा भी खत्म हो रही है।

जलवायु परिवर्तन व गंगा में प्रदूषण का असर औषधीय पौधों के जीवन पर पड़ रहा है। वन विभाग के अफसर पौधों के विलुप्त होने का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन व गंगा जल के प्रदूषण को मान रहे हैं। नदी किनारे औषधीय गुणों से भरपूर पौधों को लेकर वन विभाग की ओर से 2019 में पुस्तक गंगा के किनारे की प्राचीन वनस्पतियां में संकलित कर प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक में मां गंगा के किनारे पाई जाने वाली औषधियों को शाक एवं घास, झाड़ी व वृक्ष तीन प्रजातियों में विभाजित किया गया। शाक व घास की 16 प्रजातियां, झाड़ी की 18 प्रजातियां व वृक्ष की 71 प्रजातियों का उल्लेख पुस्तक में किया गया है।

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विलुप्त हो गए झाउ के पौधे

गंगा के किनारे रहने वाले अभिषेक कुमार, राकेश कुमार का कहना है कि कटरी काे हरा भरा बनाने वाले झाउ के पौधे बीते 20 -25 वर्षों में गायब हो गए। पहले झाउ के पौधे बहुतायत हुआ करते थे, ग्रामीण इन पौधे से मवेशियों के लिए बर्तन ( छीटा, झउवा) बनाते और ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, जंगली जीव इन्हीं की ओट में विचरण करते थे, लेकिन अब गंगा के तट से यह पौधे खत्म हो गए हैं।

यह पौधे भी हुए गायब

गंगा के आंचल से रक्त चंदन, चंदन, कृष्णावट, तमाल, सुपाड़ी के पेंड अत्यंत दुर्लभ हो गए हैं, नदी के किनारे एक एक कर विलुप्त हो रहे पौधों के संरक्षण को लेकर वन विभाग मौन है।

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गंगा तट पर औषधीय गुण वाले व फलदार पौधे रोपित करने चाहिए, जिससे मिट्टी का कटाव कम होगा, आमजन को आहार के लिए फल मिलेंगे व वातावरण में शुद्ध प्राण वायु मिलेगी। गंगा का प्राचीन स्वरूप वापस लाने के लिए भले ही गंगा हरितिमा जैसे अभियान चलाए जा रहे हैं। यह नाकाफी हैं। पौधों के बिना गंगा का वास्तविक स्वरूप वापस नहीं आ सकता। विलुप्त पौधों का रोपण व उनका संरक्षण कराए जाने पर जिम्मेदारों को विचार करना चाहिए।

महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि, सनातन धर्म पीठ बड़ा मठ डलमऊ

मां गंगा के किनारे से गायब हो रहे पौधे चिंता का विषय है। कटरी से जंगल कम होने से वन्य जीवों पर बुरा असर पड़ रहा है। मिट्टी का कटाव भी बढ़ रहा है। इस पर विभाग को ध्यान देकर पौध रोपड़ कराना चाहिए।

महादेव सिंह, पर्यावरण विद

वन रेंज अधिकारी डलमऊ रविकुमार ने गंगा तट से विलुप्त हो रहे पौधों के बाबत बताया कि जलवायु परिवर्तन व जल में प्रदूषण के कारण कई औषधीय पौधे विलुप्त हो गए हैं। किनारे पौध रोपण कराया जा रहा है।