समसपुर पक्षी विहार की झील में आए सैकड़ों विदेशी परिंदे, सर्द हवाओं संग गूंज रहा कलरव

समसपुर पहुंचे हज़ारों किलोमीटर उड़कर आए प्रवासी जलपक्षी पक्षी

शीतकालीन प्रवास शुरू, यूरोप-अफगानिस्तान से हजारों किलोमीटर उड़कर पहुंचे मेहमान
: सलोन क्षेत्र की छह प्रमुख झीलें विदेशी परिंदों के कलरव से फिर गुलजार

: बार-हेडेड गूज, पेलिकन, रेड क्रेस्टेड पोचर्ड समेत दर्जनों दुर्लभ प्रजातियाँ दर्ज

रायबरेली। कड़ाके की ठंड शुरू होते ही सलोंन समसपुर पक्षी विहार की सबसे बड़ी झील पर विदेशी परिंदों का विहंगम संसार एक बार फिर सज उठा है। सर्दियों की आहट के साथ जैसे ही धुंध ने धरती को स्पर्श किया, वैसे ही यूरोप, अफगानिस्तान, तुर्किस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश से हजारों किलोमीटर का आसमानी सफर तय करने वाले प्रवासी पक्षियों ने सलोन क्षेत्र की हाकगंज, गोडवा-हसनपुर, विसैइया, ममुनी, रोहिनिया और समसपुर झीलों को अपना मौसमी बसेरा बनाना शुरू कर दिया है।

जनवरी और फरवरी के दो महीनों तक इन झीलों में परिंदों का कलरव चरम पर होगा, जिसे देखने दूर-दूर से पर्यटक जुटते हैं। सुबह की पहली किरण पड़ते ही झीलों पर तैरते ग्रेलैग गूज, बार-हेडेड गूज, रेड क्रेस्टेड पोचर्ड, मैलर्ड, पिन-टेल, कॉमन टील, रड्डी शेलडक और पेलिकन जैसे दुर्लभ विदेशी पक्षियों की आवाजाही प्रकृति के उस अद्भुत सौंदर्य देखते बनता है, जिसका इंतजार स्थानीय लोग पूरे वर्ष करते हैं।

इनमें से कुछ प्रजातियाँ पाँच हजार किलोमीटर की दूरी और लगभग 8,500 मीटर की ऊँचाई पार कर इन शांत जलाशयों तक पहुँचती हैं। समसपुर पक्षी विहार को 1987 में संरक्षण क्षेत्र घोषित किया गया था, जिसके बाद से प्रतिवर्ष नवंबर से मार्च के बीच यहाँ प्रवासी पक्षियों की चहल-पहल बनी रहती है। जनवरी में झीलें अपने प्राकृतिक वैभव के चरम पर होती हैं, जब विदेशी मेहमानों के साथ स्पून बिल, ब्लैक आइबिस, डार्टर, सारस क्रेन, कॉम्ब डक, मोर, हुदहुद, बुलबुल जैसे सैकड़ों स्थानीय परिंदे भी परिदृश्य को और रमणीय बना देते हैं।

झीलों के आसपास मत्स्य-जीवों—जैसे नैन, सिंधरी, मांगुर, केतला, पाढ़न—और वन्य जीवों में नेवला, गिलहरी, खरगोश, सिवेट, नीलगाय, सेही तथा कछुआ, अजगर और विभिन्न प्रजातियों के सांपों की उपस्थिति इस पारिस्थितिक तंत्र को और समृद्ध बनाती है। विश्ववार्ता की टीम पक्षियों का नजारा देखने पक्षी विहार पहुंचा तो रेंजर प्रियंका पटेल ने बताया कि इस वर्ष विदेशी पक्षियों की वैज्ञानिक गणना के लिए विशेष टीमें गठित की जा रही हैं।

झीलों की लगभग 80 प्रतिशत सफाई भी प्राथमिकता के आधार पर कराई जा रही है, ताकि पक्षियों को स्वच्छ और अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो सके। उन्होंने कहा कि सर्द हवाएँ तेज होते ही झीलों पर विदेशी पक्षियों की उपस्थिति और बढ़ेगी। इस बार रिकॉर्ड संख्या में प्रवासियों के आने की संभावना है, जिसकी विस्तृत सूची तैयार की जा रही है। समसपुर पक्षी विहार की झीलों पर इन परिंदों का सुबह-शाम का नृत्य, पंखों की फड़फड़ाहट और जल में तैरते रंग-बिरंगे झुंड एक ऐसा मनोहारी दृश्य रचते हैं, जिसे देखने के लिए प्रकृति-प्रेमी पर्यटक सर्दियों के मौसम में अवश्य पहुँचते हैं।

समसपुर की झीलों में नज़र आए कॉमन कूट परिंदे

समसपुर पक्षी विहार- सलोन, रायबरेली। समसपुर पक्षी विहार रविवार की सुबह शांत झीलों में इस वक्त बड़ी संख्या में कॉमन कूट का झुंड देखा जा रहा है। कॉमन कूट शीतकाल में कजाखिस्तान, रूस (साइबेरिया), मंगोलिया, उत्तरी चीन, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान और यूरोप के ठंडे क्षेत्रों से हजारों किलोमीटर की उड़ान भरकर समसपुर पक्षी विहार पहुँचते हैं।

ये पक्षी औसतन 2,000 से 5,000 किमी लंबी दूरी तय कर हिमालय पार करते हुए नवंबर से फरवरी तक यहां डेरा डालते हैं। काले भूरे पंखों और चमकदार सफेद फ्रंटल शील्ड से पहचाने जाने वाले ये जलपक्षी शीतकालीन प्रवास के दौरान बड़ी झीलों और दलदली क्षेत्रों में सक्रिय रहते हैं।

सुबह की धूप में जल सतह पर इनका तैरना और समूह में भोजन खोजना प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का विषय बना हुआ है। इनकी बढ़ी हुई उपस्थिति इस बात का संकेत है कि विहार का जल वातावरण इन प्रवासी और स्थानीय दोनों प्रजातियों के लिए अनुकूल है।इनका आगमन झीलों की जल गुणवत्ता और समृद्ध जैव-विविधता का महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है।

झील की सफाई के बीच पक्षियों की बढ़ी आवाजाही

वन विभाग इस वर्ष करेगा वैज्ञानिक गणना, झीलों की 80% सफाई अभियान प्रारंभ

समसपुर झील अधिकांश जलकुंभियों का जाल बिछा है। हालांकि इन दिनों झील की सतह से जलकुंभी हटाने का अभियान जारी है। वन रेंजर ने बताया कि वन विभाग द्वारा चलाए जा रहे इस मैकेनिकल क्लीनिंग कार्य के कारण जल सतह खुली हो रही है, जिससे अधिक संख्या में प्रवासी पक्षियों को सुरक्षित बैठने और भोजन खोजने का उपयुक्त वातावरण मिल रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जलकुंभी की कमी सीधे तौर पर पक्षी गतिविधियों में बढ़ोतरी का कारण बनती है।

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