अंकुश त्रिवेदी रायबरेली
कदम चूम लेती है खुद बढ़कर मंजिल मुसाफिर अगर अपने हिम्मत ना हारे यह पंक्तियां सुदामा पुर निवासी तारा पर सटीक बढ़ती है। पिता के घर गरीबों में दिन बीते। ससुराल में आते ही मजदूरी करनी पड़ी । बीमार होने पर मजदूरी का भी कार्य बंद हो गया। कमजोर होने की वजह पांच साल पहले पति के साथ घर पर झाड़ू बनाने का काम शुरू किया। आमदनी बढ़ने पर काम को बिस्तार देकर आत्मनिर्भर बनाने के साथ साथ महिलाओं तथा युवकों को रोजगार देने कार्य शुरू किया। पति पत्नी की इस पहल की चारों ओर सराहना हो रही है।
2021 में तारा ने घर पर पति के साथ मिलकर मेहनत मजदूरी से इकट्ठा की गई छोटी पूंजी से झाड़ू बनाने का कार्य शुरू किया। पति बिंदादीन तैयार झाड़ू को साइकिल, तथा मोटरसाइकिल से पास पड़ोस की दुकानों पर पहुंचते थे। अच्छा सामान होने की वजह से आमदनी के साथ मांग बढ़ती गई। वर्ष 2023 में गांव की तीन महिलाओं को झाड़ू बनाने के कार्य में सहयोगी के तौर पर लगा लिया। जिन्हें ₹2 से 6 रुपए तक प्रति झाड़ू की दर से पारिश्रमिक देने लगी। जिसकी वजह से महिलाओं के साथ युवकों ने भी झाड़ू बनाने के कार्य में रुचि बढाई। इसका असर इतना बड़ा की झाड़ू बनाने का कार्य उद्योग का रूप ले चुका है। पति-पत्नी जीएसटी धारक बन झाड़ू का थोक व्यापार करने लगे।
तारा देवी महिलाओं के घर पर झाड़ू बनाने का कार्य करती है। पति सुदामा पुर तिराहे पर, तथा सहयोगी सावित्री के द्वारा गंगागंज में झाड़ू बनाने का कार्य करवाया जाता है। शिवलली, सुष्मिता, शोभा, रूबी,खुशबू,सावित्री , कंचन,उषा, सोनू अवधेश , सुरेंद्र सहयोगी के रूप में कार्य कर रहे हैं।
बिंदा दीन ने बताया कि शुरुआत के दिनों में परेशानियों का सामना करना पड़ा। दुकानदार झाड़ू खरीदने में आनाकानी करते थे। लेकिन अच्छा झाड़ू होने की वजह से बाजार में मांग बढ़ती गई। इस समय रायबरेली फतेहपुर प्रतापगढ़ जनपद के व्यापारी स्वयं खरीदने के लिए आते हैं। सहयोग की भावना से कार्य करने की वजह से साल भर में छ सात लाख की आमदनी हो जाती है। साथ ही दर्जन भर परिवार झाड़ू बनाने के कार्य में सहयोग कर आत्मनिर्भर बन रहे हैं।