1954 में आयोजित कुंभ में 5000 लोगों की हुई थी मौत

न्यूज़ डेस्क: महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरी बड़ा मठ डलमऊ आयु लगभग 95 वर्ष से कुंभ को लेकर बातचीत की गई तो गई। 1954 के प्रधानमंत्री नेहरू के समय के कुंभ से लेकर आज के कुंभ पर उनके अनुभव पर चर्चा हुई।

स्वामी देवेंद्रानंद गिरी का बचपन से लेकर 15 से 16 साल तक प्रवास और अध्ययन डलमऊ मठ के स्वामी जी के सानिध्य में रह। उसके बाद काशी में दक्षिणमूर्ति में आगे की पढ़ाई के लिए चले गए।

1954 में पूज्यपद ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर निरंजनी अखाड़ा के आचार्य पूर्व का नाम शाही और वर्तमान ने अमृत स्नान नाम से प्रसिद्ध शाही स्नान में हम लोग चल रहे थे। हम शाही स्नान में हाथी के साथ चल रहे थे। ऋषि गिरी जी के हाथी पर विराजमान और निरंजनी अखाड़ा के आचार्य थे। उसी समय शाही यात्रा रुक गई। समझ नहीं पाए यात्रा क्यों रुक गई। डेढ़ घंटे रुकने के बाद प्रयास किया रुकने का क्या कारण है पता किया जाए। मुंबई के महंत अखिलानंद को साथ लेकर आगे देखने गए कि क्या कारण है तो वहां देखा हजारों की संख्या में शव पड़े हैं। शवों के बीच निकलते हुए निरीक्षण किया तो कारण मालूम पड़ा नेहरू जी का काफिला इस तिथि में आया है।

उसी रात पानी बरसा था। जो बांध के ऊपर काफिला आया और बांध के नीचे भगदड़ मची थी। रात में पानी बरसा था इस कारण बांध से फिसलन हुई। भीड़ की चपेट में जो आया लड़खड़ाया फिर गिर गया। उसमें कम से कम 4000 से 5000 आदमी धक्के और गिरने के कारण मृत्यु की गोद में सो गए।

ज्यादातर भीखमंगे और तीर्थ यात्री के शव थे। जो बैठे थे सो रहे थे। खत्म हो गए थे। सुबह 5 से 6 बजे की घटना थी। निर्वाणी की शाही यात्रा निकल गई थी निरंजनी अखाड़ा की शाही यात्रा निकल रही थी।

इस बीच की यह घटना है। घटना के बाद तीन ट्रक जूते चप्पल निकले थे। उस समय की विश्व की सबसे बड़ी दुर्घटना रही।
उस समय मंडलेश्वर हाथी पर चलते थे। इस घटना को देखते हुए 29 जनवरी की घटना उपद्रवियों के कारण हुई लगती है।
जिस समय में शव के बीच से बच बचाकर गुजर रहा था। रोएं खड़े हो रहे थे कुछ आंसू भी निकल रहे थे। उस समय कानून बना जो कुछ समय तक लागू रहा की शाही स्नान के समय कोई वीआईपी ना आवे।

यद्यपि हजारों शव देखकर मुझे भय नहीं लगा। हालांकि शव देखकर आदमी डर जाता है। डलमऊ मठ में बचपन से ही शमशान घाट पर शव देखते रहने के कारण मन मजबूत रहा।

भारतीय संस्कृति इतनी पुष्ट है और श्रद्धालु में इतनी भक्ति है कि यह परंपरा सतयुग से चल रही है। इतनी घटनाएं होती रहती है लेकिन कोई डरता नहीं।

स्वामी जी जिले के गौरव हैं। स्वामी जी की आयु लगभग 95 वर्ष है कुंभ मेला क्षेत्र में डलमऊ मठ का शिविर 1954 से आज भी उसी तरह से बड़ा कैंप लगता है। शिष्यों, भक्तों और आमजन के लिए रहने खाने का प्रबंध रहता है। जिसमें जिले, प्रदेश और विदेश के लोग श्रद्धा पूर्वक आते हैं। इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और अन्य देशों के लोग भी डलमऊ मठ के शिविर में आते हैं। डलमऊ मठ लोगो का गौरव है गंगा से निकटता है। डलमऊ से होते हुए गंगा प्रयागराज आती है।

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