लखनऊ। मोती महल लॉन में बीते 9 दिनों से चल रही श्रीराम कथा का समापन आज संत सम्मेलन के साथ हुआ। कथा के अन्तिम दिवस वृन्दावन से पधारे वरिष्ठ संत एवं धर्म सम्राट करपात्री जी महाराज के विरुद्ध शिष्य समर्थश्री त्र्यम्बकेश्वर चैतन्य जी महाराज ने कथा जिज्ञासुओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि श्रीराम कथा हमें जीवन जीने की कला सिखाती है।
संतश्रेष्ठ ने कहा कि अपने पिता की आज्ञा का पालन कर जंगल में 14 वर्ष व्यतीत करने वाले श्रीराम जन जन के प्रिय बन गए तथा उनका नाम सदा सदा के लिए अमर हो गया। वह अपने पिता का अन्तिम संस्कार नहीं कर सके, लेकिन गीधराज जटायु का संस्कार कर उन्होंने एक मिसाल कायम की। उन्होंने कहा कि
पशु-पक्षियों से प्रेम करने वाले श्रीराम हर युग में एक आदर्श हैं। प्राणियों में सद्भावना हो, यही राम कथा का सन्देश है। सभी संत एकमत थे कि श्रीराम कथा
आचार-विचार और आहार-व्यवहार सिखाती है।
डॉ. आचार्य डॉ. सप्तर्षि मिश्र एवं सहयोगियों द्वारा यज्ञ – हवन आरती और भण्डारे के साथ महाप्रसाद वितरण किया गया। कथा श्री गणेश के दिवस जल कलश शोभायात्रा में शामिल होने वाली माताओं – बहनों को श्रीफल के साथ पीत कलश प्रसाद में दिए गए। दण्डी स्वामी श्री देवेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज, जगन्नाथपुरी से पधारे स्वामी प्रणवानंद, चूरू राजस्थान से पधारे स्वामी कृष्णानंद, प्रयागराज से पधारे ब्रह्मचारी ब्रजेश तथा ब्रह्मचारी शौनक चैतन्य महाराज ने संत सम्मेलन में अपने विचार व्यक्त किये।कथा संयोजक संजीव पाण्डेय ने सभी का आभार व्यक्त किया।
चूरू राजस्थान से पधारे राधेश्याम शर्मा ने सभी सन्तों को अंगवस्त्र और श्रीफल रजत दक्षिणा देकर सम्मानित किया। श्रीराम कथा महोत्सव के संरक्षक पूर्व मंत्री व सांसद डॉ. अशोक बाजपेयी जी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सभी सन्त समाज का अभिनन्दन किया। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजन हर वर्ष होने चाहिए क्योंकि इससे जनसामान्य को श्रेष्ठ प्रेरणायें प्राप्त होती हैं।