नागेश त्रिवेदी रायबरेली: सन्त निरंकारी आश्रम में सोमवार को सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया।सत्संग की अध्यक्षता करते हुए वक्ता रतीपाल ने कहा निर्मल मन तन को शीतलता प्रदान करता है। शीतल स्वरूप पावन होता है। मुख से निकले वचन कोमल बन जाते हैं ।
सन्तों का स्वभाव ही दूसरों के शीतलता पहुंचाता है। दूसरों का उपकार करना ही मानव धर्म है।
महापुरुषों ने कहा है कि मन की सुंदरता मानव की विशेषता का वर्णन करती हैं। तन की सुंदरता का कोई मोल नहीं है।मन के मैल को मिटाना है। इस मन को निर्मल बनाना है। जैसे-जैसे मन के मैंल मिट जाते हैं। वैसे वैसे हमारे विचार, आचरण, व्यवहार पवित्र होता चला जाता है। हमारी बोली में हमारे शब्दों में तभी मिठास आयेगी। सभी के साथ तभी हम प्यार बाट पायेंगे ।सभी का सत्कार कर पाएंगे ।
निर्मल मन से प्रभु परमात्मा के साथ जुड़कर हम सभी अपने जीवन को सार्थक कर सकते हैं। इसलिए महात्मा कहते हैं परमात्मा से हर पल-नाता बनाए रखना है ।उसके अहसास में ही जीवन को बनाए रखना है। इस मौके पर बसन्त लाल, हरिकेश, रुपेश कुमार, पवन कुमार, रज्जन, राधिका, वंदना, ऊषा देवी आदि मौजूद रहे।
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