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रायबरेली: डलमऊ में लगने वाले प्रांतीय मेले में लगातार मेलार्थियों की संख्या में गिरावट हो रही है। इसको लेकर सनातन धर्म पीठ के संतों व विश्व हिंदू परिषद के पदाधिकारियों ने चिंता जाहिर करते हुए डलमऊ की प्राचीन संस्कृति को बचाने की मुख्यमंत्री को पत्र भेजा है।
विश्व हिंदू परिषद ने भी डलमऊ में श्रद्धालुओं की घटती संख्या पर विचार कर व्यवस्था पर सुधार करने पर जोर दिया है। विहिप के लालगंज के जिलाध्यक्ष अजय पांडेय का कहना है कि जिला प्रशासन कोे गंभीरता पूर्वक विचार कर अभी से अगले वर्ष 2025 में लगने वाले मेले की तैयारियों पर तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। बस स्टाप मां गंगा के निकट बनाने के लिए भूमि का चयन का कार्य अभी से शुरू करना चाहिए।
धर्माचार्य प्रमुख सुशील शास्त्री का कहना है कि डलमऊ अत्यंत प्राचीन नगर है। बौद्ध काल से पहले से डलमऊ का इतिहास है। यहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए प्रदेश सरकार ने कार्तिक पूर्णिमा मेले को प्रांतीय मेले का दर्जा दिया है। आरोप है कि प्रशासन की ओर से श्रद्धालुओं के साथ की जा रही ज्यादती के कारण साल दर साल लोग कम आ रहे हैं।
जिस मेले में 10 लाख से अधिक लोग आते थे उस मेले में इस बार एक लाख लोग आए। कम संख्या होने के बावजूद प्रशासन ने मेलार्थियों को परेशान किया। धार्मिक नगरी में मेलार्थियों के रुकने के लिए धर्मशाला भी नहीं हैं। लोग अपने तीर्थ पुरोहिताें के घर पर रुकते हैं, लेकिन प्रशासन उनको पुरोहितों के घर तक जाने ही नहीं देता। इस बार लोग परिवार के साथ रात भर खुले आसमान के नीचे रहने के लिए मजबूर हुए हैं।

निराश हुए व्यापारी
प्रांतीय मेले में मेलार्थियों की संख्या अधिक होने के कारण व्यापारियों में मायूसी है। खागा के राजू हर साल लाठी की दुकान लगाते हैं। राजू का कहना है कि इस बार भाड़ा निकालना मुश्किल हो गया है। कपड़े व कास्मेटिक की दुकान लगाने वाले खागीपुर सड़वां निवासी मो याकूब का कहना है कि पहले मेले में व्यापार अच्छा होता था, लेकिन इस बार माल बच गया है। लागत भी नहीं निकल पाई। सनातन धर्म पीठ के स्वामी गीतानंद गिरि का कहना है कि मेलार्थियों की सुविधा को देखते हुए तैयारी करनी चाहिए।

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