न्यूज़ डेस्क: सनातन धर्म पीठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि ने बताया कि दीपावली मनाने का क्रम त्रेता युग से शुरू हुआ था। सबसे पहले दीपोत्सव अयोध्या में तब मनाया गया था जब रावण को मार कर भगवान राम अयोध्या आए थे। तब नगर वासियों ने यह उत्सव मनाया गया था। उस दिन कार्तिक मास की अमावस्या थी। श्रीराम के अयोध्या लौटने की खुशी में नगरवासियों ने घी के दीपक जलाकर खुशियां मनाई थीं।
साल कार्तिक मास की अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर में 3:52 बजे शुरू होगी और अगले दिन यानी कि एक नवंबर की शाम को छह बजे तक रहेगी। इसलिए इस वर्ष अमावस्या तिथि दो दिन विद्यमान रहेगी।
होती है मां लक्ष्मी की पूजा
दीपावली पर शाम को वैदिक मन्त्रोच्चार के साथ माता लक्ष्मी व भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र को लाल या पीला कपड़ा बिछाकर लकड़ी के पाट पर रखें। सबसे पहले मूर्ति को स्नान कराएं, फिर धूप, दीप जलाएं। मां लक्ष्मी की मूर्ति के मस्तक पर हल्दी कुंकुम, चंदन लगाएं और चावल छिड़कें।
नैवेद्य लगाकर मां लक्ष्मी व भगवान गणेश का पूजन करें। रात भर दीप चलाएं । स्वामी देवेंद्रानंद गिरि महाराज का कहना है कि इस दिन विधिपूर्वक पूजन करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। धन, वैभव व घर में सुख समृद्धि आती है।