रायबरेली : देवोत्थानी एकादशी मंगवार को हर्षोल्लास के साथ मनाई गई। शाम के समय महिलाओं न तुलसी के पौधे की पूजा अर्चना कर परिवार कल्याण की कामना की। देवी मंदिरों में पूजन अर्चन के लिए लंबी कतारें लगी रहीं।
सुबह से ही शहर के मनसा देवी मंदिर, डलमऊ के मां दुर्गा शक्ति पीठ बड़ा मठ, पथवारी देवी मंदिर में महिलाओं की कतारें लगने लगी। सनातन धर्म पीठ बडा मठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रानंद गिरि का कहना है कि आषाढ़ की शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक माह की एकादशी तक देवता शयन करते हैं। इसीलिए इन चार महीनों में हिंदू धर्म में मांगलिक कार्य नहीं होते। चार माह के बाद कार्तिक माह की देवोत्थानी एकादशी के दिन शयन से देवता उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। इस दिन जो व्रत रख कर विधिवत तुलसी पूजन करता है, उसको दिव्य फल प्राप्त होता है। सनातन धर्म पीठ के स्वामी दिव्यानंद गिरि ने बताया कि देवोत्थानी एकादशी को तुलसी विवाह के रूप में भी जाना जाता है। सुबह ब्रम्हमुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए। एक आसन पर तुलसी का पौधा और दूसरे पर शालिग्राम जी को स्थापित कर वैदिक मंत्रों के साथ पूजन करने से जातक को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
देवोत्थानी एकादशी की रात गांवों में महिलाएं गन्ने के छोटे डंडे से सूप बजाकर मां लक्ष्मी का आह्वान करती हैं। मान्यता है कि सूप बजाकर मां लक्ष्मी व भगवान विष्णु का आवाहन करने से धन, वैभव की प्राप्ति होती है। मंगलवार की देर रात महिलाओं ने सूप बजाने की प्रथा को निभाते
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