पौष पूर्णिमा पर श्रद्धालुओं ने लगाई आस्था की डुबकी

न्यूज़ डेस्क: पौष माह की पूर्णिमा को पापों का शमन करने वाली पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता हैं। पौष माह की पूर्णिमा से ही साधु ,सन्त कल्पवास प्रारम्भ करते हैं । धार्मिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति पौष माह की पूर्णिमा में मां गंगा या पवित्र सरोवरों में स्नान करता है वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है । पौष माह की पूर्णिमा से माघ माह प्रारम्भ होता है । माघ का महीना सबसे पवित्र माह माना जाता है ।

पौष माह की पूर्णिमा के अवसर पर गुरुवार को डलमऊ के सड़क घाट, वीआईपी घाट, रानी शिवाला घाट, पक्का घाट, संकट मोचन घाट, पथवारी देवी घाट, गौराघाट, महावीरन , घाट सहित सभी 16 गंगा घाटों पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने मां गंगा के पवित्र आंचल में आस्था की डुबकी लगाई । गंगा स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने तट पर स्थित विभिन्न देवी देवीदेवताओं के मंदिरों ने पूजन अर्चन कर अपने तीर्थ पुरोहितों को यथा शक्ति दृव्यदान, वस्त्रदान , अन्नदान देकर जीवन कल्याण की याचना की ।

ठंड़ से राहत देते रहे अलाव
नगर पंचायत की ओर से गंगा के सभी प्रमुख घाटों पर अलाव की व्यवस्था की गई थी । स्नान के बाद ठंड़ से ठिठुर रहे श्रद्धालुओं को अलाव राहत देते रहे । ठंड से निजात के लिए लोग पास बैठकर अलाव तापते रहे ।

एक माह कल्पवास में रहेंगें संत
डलमऊ बड़ा मठ के महामंडलेश्वर स्वामी देवेंद्रा नन्द गिरि ने पौष माह की पूर्णिमा के महत्व पर प्रकास डालते हुए बताया कि पौष माह की पूर्णिमा से कल्पवास प्रारम्भ होता है । कल्पवास के दौरान वेदकालीन समय में ऋषि, मुनि जंगल में निवास कर साधना करते थे । कल्पवास का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। कल्पवास के दौरान ऋषि-मुनि ध्यान व तपस्या करते हैं। इन्ही ऋषियों ने गृहस्थों के शुक्रवारुवास का विधान रखा।

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