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परमात्मा प्रेम और समर्पण के भूखे होते हैं

नागेश त्रिवेदी: सन्त निरंकारी सत्संग आश्रम जगतपुर में शनिवार को सत्संग कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सत्संग वक्ता श्याम प्यारे ने भक्ति की पराकाष्ठा को प्रेम बताते हुए कहा।जिन्हें प्रेम करना आ गया। उनके लिए प्रभु प्राप्ति बहुत ही सहज हो जाती है ।प्रेम में शौदा नहीं समर्पण होना चाहिए।
सतगुरु कहते हैं कि अपने सत्कर्म से हम सभी प्रेममय जीवन जी सकते हैं। परमात्मा प्रेम और समर्पण के भूखे हैं। सच्चे समर्पण के बाद कण कण में परमात्मा के दर्शन होते हैं। परमात्मा ने हम सभी को प्रेम की प्रतिमूर्ति बनाकर भेजा है। हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए। हम सभी के जीवन में प्रेम करने के अवसर आते है। अज्ञानता बस हम सभी उस वक्त को गवां देते हैं। जबकि जीवन का सार प्रेम है। प्रेम की परिभाषाएं सभी लोग अलग-अलग तरीके से गढ़ लेते हैं। जबकि वास्तविकता कुछ और है।
प्रेम से परिपूर्ण जीवन जीने का आनंद ही कुछ अलग है। प्रेम के बगैर जीवन जीने में अनेकों प्रकार की कठिनाइयां आती है। प्रेम को रतन धन के रूप में माना गया है। जिसने भी जीवन में उतारा सुखी बन गया। प्रेम से परिपूर्ण व्यक्ति की सुगंध चारों ओर अपने आप फैल जाती है। ईश्वर से प्रेम करने पर व्यक्ति अनंत ऊंचाइयों पर पहुंचता है। हर व्यक्ति को एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए। निश्चित समय के लिए मानव तन मिला है।
आप सभी जिस प्रकार से इस मायावी संसार में जीवन जीना चाहते हैं। वैसे ही लोग आपको मिलते चले जाएंगे। लेकिन ईश्वर से प्रेम होने पर हर व्यक्ति की प्रवृत्ति बदल जाती है। मानवीय गुणों का विकास होने के साथ-साथ हर व्यक्ति सरल और विनम्र बन जाता है। विनम्रता ही मनुष्य का आभूषण है। इसके बाद ही प्रेम का अंकुरण हो जाता है। यही जीवन का सार है।इस मौके पर बसंत लाल, सिद्धार्थ ,शिव मूर्ति, रज्जन लाल ,ऊषा , रेखा ,अंजली , आदि मौजूद रही।

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