रायबरेली: जिले में गरीब थमने का नाम नहीं ले रहा है। अभी भी प्रयास के बावजूद बच्चों का शिकार हो रहा है। खाद्य सुरक्षा और पोषण सुनिश्चित करने को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर कई अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके बावजूद कुपोषित बच्चों की कम संख्या का नाम नहीं ले रही है। ऐसे में जाहिर तौर पर लोगों के दिमाग में कई सवाल घूम रहे होंगे, करोड़ों रुपये खर्च होने के बाद भी नौनिहालों की सेहत क्यों नहीं हो पा रही है।
आंकड़ों पर गौर करें तो जून में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1,119 और सामान्य कुपोषित बच्चों की संख्या 1,657 है। गरीबों से अति गंभीर 10 बच्चों को गरीबों की भर्ती केंद्र में भर्ती किया गया है, जहां उनकी देखभाल की जा रही है। बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के डी.सी.वि.विनय कुमार का कहना है कि जिले में 2,833 अकादमी केंद्र संचालित हैं।
सभी बच्चों की देखभाल पर कार्य कर रही हैं। प्रयास है कि जल्द ही जिले को कुपोषण से मुक्ति मिल जाएगी। अभिषेक कुमार, रामदोम कुमार, सुनील कुमार का कहना है कि अधिकारियों के दावे कागजी हैं।
गांव में बच्चों को समय पर पुष्टाहार दिया जाता है और उनकी देखभाल नहीं की जा रही है। हरित, तेल, दाल, चावल वितरण में भारी अनदेखी की जा रही है। यही कारण है कि कुपोषित बच्चों की संख्या डरावनी है। सरकार की अधिसूचना को नामांकित से लागू किया जाए तो बच्चों की संख्या में कमी जरूर आएगी।
कम वजन वाले बच्चों की संख्या में करीब एक हजार से ज्यादा
लगातार प्रयास के बाद भी कम वजन वाले बच्चों की संख्या में कमी नहीं हो रही है। जून में विभाग की ओर से इलेक्ट्रॉनिक्स सर्वे के बाद 2776 बच्चों का वजन कम बताया गया। विभाग की ओर से इन बच्चों पर समान नजर रखने की बात कही जा रही है। रीटेल का कहना है कि कम वजन के बच्चों को स्थानीय स्तर पर ले जाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।