ध्रुव की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान को लेना पड़ा नर नारायण अवतार

अंकुश त्रिवेदी रायबरेली

जगतपुर के शैल पुरम मजरे टांघन गांव में श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन आचार्य गोपाल शरण जी महाराज ने भक्त और नारायण की कथा का वर्णन करते हुए कहा।

 

राजा उत्तानपाद का विवाह सुनीति के साथ हुआ था। काफी समय तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। पत्नी द्वारा संतान प्राप्ति के लिए पति से दूसरी शादी करने की बात कही थी। इस बात के लिए राजा उत्तानपाद तैयार नहीं थे। पत्नी के समझाने के बाद दूसरी शादी को तैयार हुए थे। इसके बाद दूसरी शादी सुरुचि के साथ हुई।

दोनों पत्नियों में विवाद होने के चलते बड़ी पत्नी सुमित नाराज होकर कही चली गई थी। दूसरी पत्नी सूरुचि व राजा उत्तानपाद के साथ महलों में निवास करती थी।राजा राज्य का भ्रमण करने गए थे। देर रात तक न लौटने पर नाराज़ पत्नी सुरुचि ने घर का दरवाजा बंद करवा दिया था।

राजा के घर पहुंचने पर महल का फाटक बंद मिला। नाराज होकर राजा ढूंढते हुए पहली पत्नी सुनीति के पास पहुंचे ।भगवत कृपा होने की वजह से पति-पत्नी के संसर्ग से पत्नी सुनीत गर्भवती हो गई थी। जिससे ध्रुव नाम के बालक जन्म हुआ था। ध्रुव बचपन से ही भगवान की तपस्या में तल्लीन रहते थे।

कहने का तात्पर्य यह है कि ईश्वर की इच्छा के बगैर कुछ भी मिल पाना संभव नहीं है। जिस पत्नी ने संतान की प्राप्ति के लिए राजा को दूसरी शादी के लिए तैयार किया। त्याग की भावना के बाद भगवान की कृपा से उससे ही संतान की प्राप्ति हुई। ध्रुव जैसे भक्ति की पुकार पर भगवान को नर नारायण के रूप में अवतार लेना पड़ा। इस मौके पर राकेश त्रिपाठी,विनय त्रिपाठी आशीष त्रिपाठी मौजूद रहे।

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