ऊंचाहार , रायबरेली । तीन सौ किमी की पदयात्रा में शरीर को तपाकर आस्था के संकल्प को पूर्ण करने के बाद मन में अपने आराध्य की अमिट छाप लिए वापस लौटे ऊंचाहार के सवैया मीरा निवासी सुनील सिंह का रोम रोम पुल्कित है । धार्मिक आस्था में डूबे हुए मन को शारीरिक कष्ट का तनिक भी एहसास नहीं है । कुंभ का अद्भुद रूप और काशी में भगवान शिव का अलौकिक दर्शन उनके मस्तिष्क में ऐसी छाप छोड़ा कि आज भी उनका मन वहीं है ।
वो बताते हैं कि कुंभ को लेकर आतुरता और व्याकुलता आज भी इनके रोम रोम में बसी हुई है । एक फरवरी की शाम को जब वह कुंभ क्षेत्र में पहुंचे तो सड़कों पर चलती लाखों की भीड़ और संगम में स्नान करके पुण्यलाभ प्राप्त करते श्रद्धालुओं का हुजूम दिल को उत्साहित करने वाले दृश्य से आत्मा तृप्त हुई है। बताते है कि सोशल मीडिया पर वायरल दृष्टांत से इतर भी महाकुंभ है, जिसमें वही अनादि काल से चली आ रही अपनी परंपरा और संस्कृति का समावेश है।
सुनील सिंह बताते हैं कि अपने साथी अंकित मौर्य के साथ पैदल चलते हुए जब वो कुंभ पहुंचे तो सांझ ढल चुकी थी। हल्के कोहरे का पहरा था। त्रिवेणी मार्ग आने-जाने वालों से आबाद था। कुछ कदम आगे बढ़ते ही सामने होती है एक अद्भुत दुनिया। जैसे जमीं पर असंख्य तारे उतर आए हों। बिहंसती कुंभनगरी अद्वितीय आभा बिखेरती नजर आती है। यहां अहर्निश यज्ञ, भजन-कीर्तन आपको वैदिक युग की झलक दिखाएगा।
यज्ञशालाओं के आगे भस्म लगाए विराजमान शिव स्वरूप नागा साधु आपको कुछ पल के लिए ठिठकने को मजबूर कर देंगे। प्रभु की लीलाओं का मंचन करते कलाकारों को देख लोग अभिभूत होते नजर आते हैं। उनमें अपना आराध्य को ढूंढ़ते नजर आते हैं। कुंभ की आभा दुनिया को चमत्कृत-झंकृत कर चुकी है।
ऊंचाहार के इन दोनों पदयात्रियों का रास्ते में जगह जगह स्वागत भी हुआ । दो फरवरी की प्रातः कुंभ स्नान करने के बाद वहां जल भरा और पैदल ही काशी बाबा विश्वनाथ के लिए रवाना हुए । प्रयाग से काशी तक तक 129 किमी का सफर शुरू हुआ और पांच फरवरी की प्रातः तीन बजे काशी में बाबा विश्वनाथ में जलाभिषेक हुआ । तीन सौ किमी की लंबी यात्रा के बाद दोनों यात्री अपने घर लौटे तो गांव के लोगों ने भी उनका स्वागत किया ।